सोनीपत। दिल्ली की सीमाओं पर चलने वाला किसान आंदोलन अब हरियाणा में महापंचायतों से हर गांव तक पहुंच गया है। जिससे सीमाओं पर भले ही भीड़ पहले की तरह नहीं रही हो, लेकिन गांवों में आंदोलन का समर्थन बढ़ रहा है। इसलिए नेताओं के साथ टकराव के हालात पैदा हो रहे हैं और इन हालात को देखते हुए ही भाजपा-जजपा नेताओं ने गांवों में जाने से परहेज करने लगे हैं। यह हालात केवल हरियाणा के अंदर ही नहीं हैं, बल्कि वेस्ट यूपी के हालात भी ऐसे हो गए हैं और वहां भी भाजपा नेता फिलहाल सार्वजनिक कार्यक्रमों से परहेज कर रहे हैं। इस पर खुफिया एजेंसियों तक ने अपनी रिपोर्ट सरकार को भेजी है और इन हालात को देखते हुए अभी नेताओं को गांवों में जाने से बचने की सलाह दी गई है।
किसान आंदोलन की शुरुआत हुई तो उस समय पंजाब के किसान सबसे ज्यादा थे और इसका असर भी सबसे ज्यादा पंचायत में दिखाई दे रहा था। ट्रैक्टर परेड के दौरान बवाल होने पर किसान आंदोलन टूटने पर भाकियू नेता राकेश टिकैत की आंखों से निकले आंसू संजीवनी बने और किसान आंदोलन दोबारा से खड़ा हुआ। इस बार सबसे ज्यादा असर हरियाणा में दिखाई दिया तो उसके बाद वेस्ट यूपी तक असर दिखा। इसको देखते हुए ही दोनों जगह महापंचायत शुरू की गई और हरियाणा में सबसे ज्यादा महापंचायत की गई। जिसके बाद दिल्ली की सीमाओं पर भले ही भीड़ पहले की तरह नहीं रही हो, लेकिन इन महापंचायतों के सहारे यह आंदोलन हर गांव तक पहुंच गया। हर गांव से आंदोलन का समर्थन बढ़ता चला गया और इस कारण ही सरकार में शामिल नेताओं के साथ टकराव के हालात बढ़ते जा रहे है। इन हालात को देखते हुए ही भाजपा व जजपा नेताओं ने गांवों में जाने से परहेज शुरू कर दिया है और गांवों में कोई बड़ा कार्यक्रम अभी नहीं किया जाएगा। भाजपा नेता खुद भी मानते है कि किसान आंदोलन के कारण ही गांवों में नहीं जा रहे है, क्योंकि वह नहीं चाहते कि किसी तरह का विवाद खड़ा हो।