कॉमनवेल्थ गेम्स में पहली बार देश को हॉकी में मेडल दिलाने वाली भारतीय महिला टीम में चार बेटियां सोनीपत से हैं। टीम की शनिवार को हुई हार से इनके परिजनों में जो निराशा थी, वह रविवार को ब्रॉन्ज जीतने के बाद खुशी में बदल गई। भारतीय महिला हॉकी टीम में शामिल ज्योति, नेहा गोयल, निशा वारसी के परिवार ने मेडल के बाद जमकर खुशी मनाई। परिजन बोले कि उन्हें यकीन था कि बेटियां खाली हाथ देश नहीं लौटेंगी और यही हुआ।
ज्योति, नेहा गोयल और निशा वारसी तमाम मुश्किल हालात से लड़ते हुए इस मुकाम तक पहुंची हैं। इन तीनों के साथ उनकी फैमिली ने भी बराबर तपस्या की है। हालांकि रविवार को टीम के मेडल जीतने के साथ ही परिवार वो सारे दर्द भूल गए। ज्योति, नेहा और निशा सोनीपत में भारतीय महिला हॉकी इंडिया की कैप्टन रह चुकीं प्रीतम सिवाच के पास ट्रेनिंग ले रही हैं।
बेहद गरीबी और मुफलिसी के बावजूद अपने मजबूत इरादों के बूते सफलता पाने वाली इन तीनों प्लेयरों की कामयाबी में प्रीतम सिवाच का बड़ा हाथ है। माता-पिता ने भी उनके लिए कई बलिदान दिए। सोनीपत से ही ताल्लुक रखने वाली इनकी चौथी साथी मोनिका मलिक परिवार के साथ चंडीगढ़ रहती हैं और वहीं प्रैक्टिस करती है।
ज्योति की डाइट के लिए मां ने किया झाड़ू-पोंछा
ज्योति के पिता का निधन हो चुका है। उसकी मां सरोज बताती हैं कि पिता के निधन के बाद ज्योति ने छठी कक्षा से हॉकी खेलना शुरू किया। तब उनके पास उसे हॉकी स्टिक दिलाने और स्कूल में ट्रेनिंग की फीस भरने लायक पैसे भी नहीं थे। उन्होंने स्कूल प्रबंधन से फीस में छूट के लिए निवेदन किया तो मना कर दिया गया। इसके बाद वह अंतरराष्ट्रीय हॉकी प्लेयर प्रीतम सिवाच के पास गईं और उन्हें अपनी पीड़ा बताई। प्रीतम सिवाच ने उनकी बात सुनते ही कह दिया कि ज्योति को उनके पास भेज दिया करें।

बेटी की कामयाबी पर डबडबाई आंखों के साथ सरोज बताती हैं कि उस समय उनके परिवार के हालात इतने खराब थे कि उन्हें अपनी बेटी को अच्छी डाइट देने के लिए लोगों के घरों में झाड़ू-पोंछा तक करना पड़ा। आज ज्योति ने मेडल जीतकर उनका सपना पूरा कर दिया।
निशा के पिता 2016 से पैरालाइज
हॉकी प्लेयर.निशा वारसी के पिता शोराब दर्जी का काम करते थे मगर 2016 में पैरालाइज हो जाने की वजह से उन्हें काम छोड़ना पड़ा। शोराब बताते हैं कि निशा ने 9 साल की उम्र में जिस समय हॉकी स्टिक पकड़ी, उस समय परिवार के पास खाने लायक पैसे भी नहीं होते थे। उनके पास बेटी को न तो जूते दिलाने लायक पैसे थे और न ही हॉकी स्टिक खरीदने की हिम्मत थी।
शोराब के अनुसार, 2016 में जब उन्हें पैरालिसिस हुआ तो घर की जिम्मेदारी निशा पर आ गई। आज भी परिवार का खर्चा वही चला रही है। एक पिता के लिए इससे ज्यादा गर्व की बात क्या हो सकती है। उनकी और निशा की बाकी टीम मेंबर्स की लंबे समय से तमन्ना थी कि वह किसी इंटरनेशनल टूर्नामेंट में मेडल जीतें। आज बेटियों ने इसे कर दिखाया।
नेहा की मां चमड़ा काटने की फैक्ट्री में मजदूर
कॉमनवेल्थ गेम्स में पहली बार मेडल जीतने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम की अहम मेंबर नेहा गोयल की बहन मोनिका ने बताया कि उनके पिताजी काम नहीं करते थे। परिवार का खर्चा चलाने के लिए मां चमड़ा काटने के साथ फैक्ट्री में मजदूरी के साथ-साथ लोगों के घरों में काम करती थी। मम्मी ने जिन मुश्किल हालात में उन्हें पाला, वह बहुत हिम्मत वाला काम था।
हरियाणा की 9 खिलाड़ियों में से 4 सोनीपत की
कॉमनवेल्थ गेम्स में गई भारतीय महिला हॉकी टीम में हरियाणा की 9 प्लेयर हैं। इनमें नेहा गोयल, सविता पूनिया, मोनिका, शर्मिला, उदिता, निशा, ज्योति, नवजोत कौर और नवनीत कौर शामिल हैं। इनमें से ज्योति, नेहा गोयल, निशा वारसी और मोनिका मलिक सोनीपत से हैं। पूरे देश-प्रदेश के साथ सोनीपत के लोगों की निगाहें भी इन बेटियों पर लगी थीं और रविवार को हुए कड़े मुकाबले में उन्होंने सबका दिल जीत लिया।

अंतिम 18 सेकंड में थमी रही सांस- प्रीतम सिवाच
कोच प्रीतम सिवाच ने कहा कि 16 साल बाद महिला हॉकी टीम का कांस्य पदक आया है और वहीं 2002 में प्रीतम सिवाच खुद खेलते हुए देश की झोली में गोल्ड मेडल आया था। वहीं 2006 के बाद भारतीय महिला हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीतकर कमबैक किया है। प्रीतम ने बताया कि उनकी एकेडमी में ज्योति, नेहा गोयल, निशा वारसी और शर्मिला चार लड़कियां महिला हॉकी टीम में खेल रही थी। अंतिम में 18 सेकंड में सबकी सांसें थम गई थी। भारतीय महिला हॉकी टीम में हरियाणा की भूमि से 10 लड़कियां कॉमनवेल्थ गेम में खेली हैं। वहीं उन्होंने कहा कि सभी बेटियों को बधाई देना चाहती हूं ।जिन्होंने देश की टीम के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।