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डॉक्टर के प्रयास से लौटी बच्ची की आंखों की रोशनी, 12 वर्षीय लड़की को थी जन्मजात मोतियाबिंद की बीमारी

जरा हटके ब्रेकिंग न्यूज़ सोनीपत

सरकारी अस्पताल के डॉक्टर के प्रयासों से आंखों की बीमारी से पीड़ित बच्ची की आंखों की रोशनी लौट आई है। 12 वर्षीय बच्ची को जन्मजात मोतियाबिंद की बीमारी थी। मां की मौत के बाद उसका पिता दिहाड़ी-मजदूरी कर अपने चार बच्चों का पालन-पोषण कर रहे हैं।

बच्चों की आंखों का आपरेशन होना था और उसके बाद महंगे लेंस डलने थे। डॉक्टर ने राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम योजना से फंड दिलवाकर महंगे लेंस मंगवाए। इसके बाद आपरेशन कर बच्ची किया, अब बच्ची अच्छी तरह से देख पा रही है।

गांव कुमासपुर के रहने वाले हरिप्रकाश ने बताया कि उसकी तीन बेटियां और एक बेटा है। वर्ष 2013 में लंबी बीमारी के बाद उसकी पत्नी की मौत हो गई। उसके पास आय का कोई स्थायी साधन नहीं है। वह दिहाड़ी मजदूरी कर अपने बच्चों को पाल रहे हैं। उसकी मंझली बेटी सविता को जन्म से ही कम दिखता है।

उन्होंने नागरिक अस्पताल में नेत्र रोग विशेषज्ञ को दिखाया तो उन्हें पता चला बेटी को जन्म से ही आंखों की दुर्लभ बीमारी मोतियाबिंद है, क्योंकि यह बच्चों में नहीं होती, यह अधिक आयु वाले लोगों में पाई जाती है।

डॉक्टर ने बताया कि बच्ची की आंखों का आपरेशन होना और इसके बाद लेंस लगाए जाएंगे। इसके बाद उसकी आंखों की रोशनी वापस आ सकती है, लेकिन उसके पास इतने रुपये नहीं थे कि वह बेटी के लिए महंगे लेंस खरीद सके।इसके बाद उसने नागरिक अस्पताल के नेत्ररोग विशेषज्ञ डॉ. विकास चहल को बेटी को दिखाया और रुपये नहीं होने की असमर्थता भी बताई।

सरकारी योजना से खरीदे गए लेंस

डॉ. विकास ने राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम देख रही रितिका और राहुल से संपर्क किया। इसके तहत भाग-दौड़ कर बच्ची की आंखों के लिए दो इंपोर्टेड लेंस खरीदने के लिए 33 हजार रुपये का फंड जारी कराया गया। इस योजना के तहत महंगा इलाज कराने में असर्मथ गरीब बच्चों के उपचार के लिए पूरा खर्च सरकार वहन करती है। बच्चों में दिल, किडनी, आंखों या अन्य किसी गंभीर बीमारी का इलाज कराया जाता है।

बिना बेहोश किए किया आपरेशन

नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. विकास चहल ने बताया कि उनके करीब पांच साल के कार्यकाल में जिले में इस तरह का पहला मामला था। उन्होंने बताया कि आपरेशन से पहले मरीज को इंजेक्शन लेकर पहले बेहोश किया जाता है लेकिन बच्ची के केस में यह खतरनाक हो सकता था।

इस उन्होंने पहले बच्ची की काउंसलिंग की। बच्चों को समझाया कि कैसे उसकी आंखों का आपरेशन होना है, इस दौरान उसे किस तरफ देखना है, हिलना नहीं है। बच्ची की एक आंख का आपरेशन आठ अप्रैल तो दूसरी का 28 अप्रैल को किया गया। दोनों में लेंस डाले गए। अब बच्ची की आंखों की रोशनी पूरी है। वह अच्छे से देख सकती है।

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